Alimony Rules: क्या तलाक में मिले पैसों पर भी देना होगा इनकम टैक्स, जाने Alimony से जुड़े सभी रूल्स

Haryana Update: इसकी दर महज 1 फीसदी है, जबकि यूरोपीय देशों में यह 94 फीसदी पहुंच गया है। फिर भी भारत में अगर हर साल 1 फीसदी भी तलाक होता है तो इसकी संख्‍या करीब 1.40 करोड़ पहुंच जाती है। तलाक के मामलों में गुजारा भत्‍ता भी तय किया जाता है। अब सवाल ये उठता है कि क्‍या तलाक के मामलों में मिली गुजारा-भत्‍ता राशि (Alimony) पर टैक्‍स देना पड़ता है। तलाक यानी पति-पत्‍नी के रिश्‍ते खत्‍म करने की बात आती है तो भारत इस मामले में दुनिया के अन्‍य देशों के मुकाबले कहीं बेहतर स्थिति में नजर आता है।

एलीमनी एक पार्टनर की ओर से दूसरे को दी गई वह राशि है, जो रिश्‍ते को खत्‍म करने के एवज में बतौर गुजारा-भत्‍ता या क्षतिपूर्ति दी जाती है। एलीमनी की राशि एकमुश्‍त दी जा सकती है या फिर हर महीने इंस्‍टॉलमेंट में इसका भुगतान किया जा सकता है। जो पैसा एकमुश्‍त दिया जाता है, उसे कैपिटल रिसीप्‍ट कहते हैं। अगर एलीमनी की राशि हर महीने दी जा रही है तो यह रेवेन्‍यू रिसीप्‍ट मानी जाती है।

 

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वैसे देखा जाए तो एलीमनी को लेकर इनकम टैक्‍स एक्‍ट 1961 में कोई अलग से प्रोविजन नहीं बनाया गया है। बावजूद इसके एलीमनी की राशि पर टैक्‍स लगाया जाता है। एलीमनी पर टैक्‍स इस बात पर निर्भर करता है कि इसकी राशि का भुगतान किस मोड से किया गया है। इसी आधार पर तय किया जाता है कि एलीमनी की राशि पर टैक्‍स लगेगा या नहीं।

इसका मतलब है कि एकमुश्‍त लिए गए एलीमनी पर टैक्‍स नहीं लगेगा और इसकी पूरी राशि इनकम टैक्‍स के दायरे से बाहर होगी। अगर तलाक के बाद एलीमनी की राशि का भुगतान एकमुश्‍त किया जाता है तो उस राशि को कैपिटल रिसीप्‍ट माना जाएगा और इस पर इनकम टैक्‍स एक्‍ट 1961 का कोई प्रावधान अप्‍लाई नहीं किया जाएगा।

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