Petrol-Diesel News: पेट्रोल-डीजल कितनी कमाई करती हैं राज्य सरकारें, जानें पूरा आंकड़ा

Haryana Update: एनडीए के तीसरे कार्यकाल में एक बार फिर से केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी को पेट्रोलियम मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई है. उनके इस पद को संभालते के साथ ही पेट्रोलियम प्रोडक्ट को जीएसटी के दायरे में लाने की खबरें तेज हो गई है. 

दरअसल पुरी ने हाल ही में कहा है कि वह पेट्रोल, डीजल और नेचुरल गैस जैसी वस्तुओं को जीएसटी के दायरे में लाने पर विचार कर रहे हैं. लोगों को उम्मीद है कि ऐसा होने पर उन्हें ईंधन की महंगी कीमत से थोड़ी राहत तो जरूर मिलेगी. 

एक सवाल ये भी उठता है कि इस फैसले से राज्य को मिलने वाले टैक्स रेवेन्यू पर कितना असर पड़ेगा. इस रिपोर्ट में विस्तार से जानते हैं कि पेट्रोल -डीजल से राज्य सरकारों की कितनी होती है कमाई, और इसका जीएसटी के दायरे में आने से उनका फायदा होगा या नुकसान  

राज्यों के लिए टैक्स कमाने का सबसे बड़ा जरिया पेट्रोल-डीजल

पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स हमेशा से ही सरकारों के लिए टैक्स कमाने का सबसे बड़ा जरिया रहा है. सरकारी डेटा से पता चलता है कि कई राज्य पेट्रोलियम प्रोडक्ट से महत्वपूर्ण टैक्स रेवेन्यू कमाते हैं, कुछ राज्यों का तो कुल टैक्स का पांचवां हिस्सा पेट्रोलियम प्रोडक्ट से ही आता है. 

पेट्रोलियम योजना और विश्लेषण सेल (पीपीएसी) और भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) के आंकड़ों की मानें तो  वित्त वर्ष 2024 में गुजरात के कुल टैक्स का 17.6 प्रतिशत रेवेन्यू पेट्रोलियम प्रोडक्ट से ही आया था. ठीक इसी तरह तमिलनाडु का 14.6 प्रतिशत और महाराष्ट्र का 12.1 प्रतिशत टैक्स की कमाई पेट्रोल डीजल से ही हुई थी.  

इतना ही नहीं सरकारी आंकड़ों के अनुसार, केंद्र और राज्य सरकारों दोनों ने वित्त वर्ष 2022-23 के 9 महीने में 545,002 करोड़ रुपये की कमाई पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स से की थी. वहीं वित्त वर्ष 2021-22 में 774,425 करोड़ रुपये, वित्त वर्ष 2020-21 में 672,719 करोड़ रुपये, वित्त वर्ष 2019-20 में 555,370 करोड़ रुपये, वित्त वर्ष 2018-19 में 575,632 करोड़ रुपये और वित्त वर्ष 2017-18 में 543,026 करोड़ रुपये की आमदनी पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स से हुई थी.

फ्यूल को जीएसटी के दायरे में लाने से राज्य का होगा नुकसान 
बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट में ग्रांट थॉर्नटन इंडिया के पार्टनर कृष्ण अरोड़ा कहते हैं कि पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के तहत लाने से टैक्स सिस्टम सुव्यवस्थित हो सकती है और ईंधन की लागत कम हो सकती है. इस तरह का फैसला उन राज्यों के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती होगी जो ईंधन के टैक्स रेवेन्यू  पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं. 

पिछले एक दशक में लगभग सभी राज्यों में पेट्रोल-डीजल की खरीद में बढ़त हुई है. इसके कारण राज्यों के कुल कर राजस्व में वृद्धि देखी गई है. साल 2014-15 में, राज्यों ने सामूहिक रूप से पेट्रोलियम करों से ₹1.37 लाख करोड़ प्राप्त किया था, जो कि 2023-24 में बढ़कर ₹2.92 लाख करोड़ हो गया.

जबकि पूरे देश में पेट्रोलियम उत्पादों पर उत्पाद शुल्क एक समान है, राज्य अपना वैट लगाते हैं, जिससे कीमतों में अंतर हो जाता है. तेलंगाना पेट्रोल पर सबसे ज्यादा 35 प्रतिशत वैट लगाता है, इसके बाद आंध्र प्रदेश 31 प्रतिशत है.

इन दो राज्यों में पेट्रोल डीजल की खपत ज्यादा
सरकारी आंकड़ों के अनुसार पेट्रोलियम से महाराष्ट्र का कर राजस्व 2018-19 में 27,190 करोड़ से बढ़कर 2023-24 (पी) में ₹36,359 करोड़ हो गया, यानी पांच साल में 34 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई. 

ठीक इसी तरह, इसी पांच साल के दौरान पेट्रोलियम पर यूपी का कर राजस्व ₹19,167 करोड़ से बढ़कर ₹30,411 करोड़ हो गया, जिसमें 59 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई.

पेट्रोल-डीजल से कैसे होती है राज्य की कमाई 
पेट्रोलियम प्रोडक्ट पर जहां केंद्र सरकार एक्साइज ड्यूटी लगाकर कमाई करती है, तो वहीं राज्य सरकारें वैट लगाकर अपना राजस्व बढ़ाती हैं. अलग अलग राज्यों में वैट की अलग-अलग दरों के वजह से पेट्रोल-डीजल की कीमतें भी राज्यों के अनुसार अलग-अलग होती हैं. 

वैट (मूल्य संवर्धित कर): वैट पेट्रोल और डीजल पर लगने वाला प्रमुख स्टेट टैक्स है. प्रत्येक राज्य की अपनी वैट टैक्स होती है, जो आमतौर पर 20-30% (पेट्रोल) और 12-20% (डीजल) के बीच होती है. 

किसी भी राज्य के राजस्व का प्रमुख स्रोत है पेट्रोल-डीजल
पेट्रोल और डीजल पर लगने वाला टैक्स किसी भी राज्य के लिए प्रमुख राजस्व स्रोत हैं, जिससे वे अलग अलग विकास कार्यों और सरकारी योजनाओं के लिए वित्तीय संसाधन प्राप्त करते हैं. इस टैक्स से राज्य सरकारों को वित्तीय स्वायत्तता मिलती है, जिससे वे अपनी आर्थिक नीतियों और बजट को नियंत्रित कर सकती हैं.

इतना ही नहीं पेट्रोल और डीजल की मांग ज्यादा होने के कारण इन पर टैक्स से स्थिर और अनुमानित राजस्व मिलता है, जिससे राज्य सरकारों की वित्तीय स्थिति मजबूत रहती है.

बड़े राज्य को पेट्रोलियम टैक्स से बड़ा फायदा
बड़े राज्यों को पेट्रोलियम टैक्स से बड़ा फायदा होता है. दरअसल बड़े राज्यों में जनसंख्या ज्यादा होने के कारण यहां के लोगों को वाहनों की जरूरत भी ज्यादा होती है और ऐसे में पेट्रोल और डीजल की खपत को बढ़ाती है, जिससे राज्य सरकारों को अधिक राजस्व प्राप्त होता है. पेट्रोल और डीजल पर लगाए गए कर बड़े राज्यों के विकास और उनके सार्वजनिक सेवा प्रावधानों के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

पेट्रोल-डीजल पर जीएसटी लागू करने से कीमत कैसे होगी कम 
वर्तमान में जीएसटी में टैक्स को चार स्लैब – 5%, 12%, 18% और 28% में बांटा गया है. अब अगर ईंधन को 28 प्रतिशत वाले सबसे महंगे स्लैब में भी  को रखा गया तब भी पेट्रोल की कीमतें मौजूदा रेट से काफी कम हो जाएंगी. 

उदाहरण के लिए मान लीजिये की पेट्रोल की 55.66 रुपये है. अगर इसमें से डीलर प्राइस पर 28% की दर से जीएसटी लगाया जाए तो ऐसे में पेट्रोल की खुदरा कीमत 72 रुपये के आस-पास हो जाएगी. यानी वर्तमान के दाम से पेट्रोल की खुदरा कीमत 22-23 रुपये तक कम हो सकती है. इसी तरह डीजल के दाम भी कम हो सकते हैं.

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